HomeLS54 गीता - सार ।। श्रीगीता जी के 166 श्लोक और उत्तरगीता, ज्ञानसंकलिनी तंत्र, मनुस्मृति, शिव - संहिता, श्रीमद्भागवत और महाभारत के चुने हुए श्लोक
LS54  गीता - सार ।। श्रीगीता जी के 166 श्लोक और उत्तरगीता, ज्ञानसंकलिनी तंत्र, मनुस्मृति, शिव - संहिता, श्रीमद्भागवत और महाभारत के चुने हुए श्लोक
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LS54 गीता - सार ।। श्रीगीता जी के 166 श्लोक और उत्तरगीता, ज्ञानसंकलिनी तंत्र, मनुस्मृति, शिव - संहिता, श्रीमद्भागवत और महाभारत के चुने हुए श्लोक

 
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Product Description


सर्वोपनिषदो गावो दुग्धा गोपालनन्दनः । पार्थो वत्सो सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।। ( वैष्णवीय तंत्रसार ) ( सभी उपनिषद् गाय हैं । भगवान् श्रीकृष्ण उन गायों के दुहनेवाले हैं । अर्जुन बछड़ा है और अच्छी बुद्धिवाले लोग गीता के श्रेष्ठ वचनामृतरूपी दूध का पान करनेवाले हैं । ) ' महाभारत ' संस्कृत भाषा में वेदव्यासजी के द्वारा लिखा गया एक ऐतिहासिक ग्रंथ है । इसके भीष्म - पर्व के २५ वें अध्याय से लेकर ४२ वें तक के अध्यायों को अलग करके ' श्रीमद्भगवद्- गीता ' नाम दिया गया है । यह शांतिपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाती है । इसकी शिक्षा पर चलकर मनुष्य आत्मसाक्षात्कार कर सकता है और सदा के लिए जन्म - मरण के चक्र से छुटकारा पा सकता है । इसका सच्चा भक्त किसी भी परिस्थिति में घबड़ाएगा नहीं और वह कभी भी दुःखी , चिंतित या शोकित भी नहीं होगा । कहा गया है कि सब धर्मग्रंथों का सार है वेद । वेद का सार है उपनिषद् । उपनिषद् का सार है ' श्रीमद्भगवद्गीता ' और ' श्रीमद्भगवद्गीता ' का सार अठारहवें अध्याय के निम्नलिखित दो श्लोकों में आ गया है मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥६५ ।। सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥६६ ॥



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