मेरा सफ़र याद नहीं मुझे मेरा यह सफर कब शुरू हुआ। कई वर्षों से लिखती आ रही हूं ।और अक्षर लिख कर फाड़ दिया करती थी ।क्योंकि शब्दों को पिरोना नहीं आता था ।मुझे लगता था जैसे आसमान और धरती का संगम है उसी तरह मेरी भावनाओं और शब्दों का संगम था। पिताजी से छुपकर लिखती थी। लेकिन मां को लिखकर सुनाती थी लिखी हुई कविताएं ।पर कहीं ना कहीं पिताजी को यह बात पता चल जाती थी ।परंतु कहते कुछ नहीं जानती थी ।उनकी नेह लिखना जानती है अपने सपनों के ख्वाबों संग खुले आसमान में उड़ना चाहती है ।वह मुझे बेटों के समान खड़ा देखना चाहते हैं।इसलिए छुपकर मेरा साथ देते थे । इसी बीच मैंने अपने पिताजी के लिए कविता का आरंभ किया उनके जज्बातों को अपने शब्दों द्वारा कागज पर कलम से लिखना चाहा। जानती हूं नहीं पसंद आपको मेरा यू लिखना लेकिन बाबा खुदा ने आपको दि औरआपने मुझे पकड़ाई । लेकिन पापा बात आपकी खुशियों के बारे में हो तो कैसे ना लिखु इन पन्नों पर अपनी बाबा के बारे में । यह पुस्तक बाबा मैं आपके लिए लिख रही हूं मेरे रूप शब्द आपके चरणों में समर्पित है। मेरी जिंदगी में यह कोरा कागज मेरा साथी मेरा हमसफ़र बरसों से था मगर इस पुस्तक से दो राही एक हुए हैं मेरी कलम इसके यू गले लग जाते हैं जैसे बिछड़े दो साथी के और यह कागज कभी मां की गोद कभी पापा का दुलार कभी दोस्त कभी महबूब के साहिल का कंधा हो जाता है लिखने के बाद खुद को हल्का महसूस करती हूं जैसे ईश्वर ने पंख लगा दिए हो यह लिखने का सपना हकीकत नहीं बनता अगर मेरे बाबा मुझे कहते नहीं यह किताब मेरे बाबा की मेहनत का एक छोटा सा हिस्सा है आशा करूंगी आपको मेरी यह किताब अच्छी लगे और आप सभी मेरी लिखी कविताओं को अपनी जिंदगी के सफर में जोड़ कर देखें। - नेहा सिंह
Writer: Neha Singh Publisher: Rana Books India