"सत्संग - प्रेमी सन्जनों का मुझसे बराबर आग्रह होता रहा कि उस अलभ्य प्रवचनों को सर्वसुलभ बनाया जाय । समयाभाव के कारण इस ओर मैं ध्यान नहीं दे पाता था । अब इधर कुछ अवकाश मिलने पर मैंने सोलह प्रवचनों का संग्रह कर ‘ महर्षि मॅहीं - वचनामृत ' नाम से उन सद्गुणग्राही सज्जनों के सम्मुख समुपस्थित किया है । अध्यात्म - जिज्ञासु पिपासुजन परमाराध्यदेव के इस प्रवचनामृत को पान कर परितृप्त होंगे और आचरण में उतारकर मानव - जीवन का लक्ष्य - परम मोक्ष प्राप्त करेंगे।" -संतसेवी (21-12-1988 ई.) पृष्ठ 114 + 6, चतुर्थ संस्करण मूल्य ₹30+(डाक खर्च) मात्र। यह पुस्तक मूल रूप में और पीडीएफ फाइल दोनों उपलब्ध है।