इस पुस्तक के अध्ययन से बोध होगा कि वेदों , उपनिषदों , गीता , सन्तवाणियों में सदा से ईश्वर - स्वरूप , उसके साक्षात्कार करने की सयुक्ति एवं अनिवार्य सदाचार - पालन के निर्देश बिल्कुल एक ही हैं। जिस गम्भीर विषय को महर्षिजी ने सरल - सुलभ जन - बोधात्मक भारती भाषा में अत्यन्त स्पष्टता से समझाया है , उसे मानव - जीवन के सर्वांगीण और पूर्ण विकास तथा कल्याण के लिए ईश्वर - भक्ति या अध्यात्म - ज्ञान की अनिवार्य आवश्यकता समझनेवाले सत्पुरुष एवं सन्तमत - सत्संग के प्रेमीगण अपनाकर लोक - कल्याण के लिए इसका प्रचार - प्रसार करते करते हुए अपने जीवन में भी अपनाएंगे। पृष्ठ 132 + शुरू के । मूल्य ₹25 मात्र । मूल पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। डाक खर्च अलग से लगेगा। अर्थात ₹25 प्लस शिपिंग चार्ज।