HomeMS18 महर्षि में सत्संग सुधा सागर, भाग 1 (पीडीएफ) || गुरु महाराज के 323 प्रवचन संग्रह।
MS18  महर्षि में सत्संग सुधा सागर, भाग 1 (पीडीएफ) || गुरु महाराज के 323 प्रवचन संग्रह।
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MS18 महर्षि में सत्संग सुधा सागर, भाग 1 (पीडीएफ) || गुरु महाराज के 323 प्रवचन संग्रह।

 
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Product Description

महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा-सागर की महत्वपूर्ण बातें

प्रभु प्रेमियों ! ' संतों के हृदय में पायी जाती हैं - ' लोककल्याण की कामना । ' इसीलिए संत का लक्षण बतलाते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी को कहना पड़ा- ' विश्व उपकारहित व्यग्रचित सर्वदा ' और ' पर उपकार वचन मन काया ' । संतों की सिद्धावस्था के बाद का जीवन ' सत्य धर्म की संस्थापना के द्वारा लोककल्याण ' के लिए पूर्णत : समर्पित हो जाता है । इसी सार्वभौमिक सिद्धान्त के साकार रूप थे- सद्गुरु महर्षि में ही परमहंस जी महाराज | अध्यात्म विज्ञान पर गंभीर प्रयोग कर उन्होंने ईश्वर प्राप्ति का जो शुद्ध , सत्य , संक्षिप्त और निरापद मार्ग उद्घाटित किया , उसे जन - जन तक पहुँचाने के लिए उन्होंने गंभीर कष्ट सहा । जाड़ा , गर्मी और बरसात का विकट मौसम , देहात की ऊँची - नीची कच्ची सड़कें , बैलगाड़ी की सवारी , कभी पैदल यात्रा , रहने को टूटी - फूटी झोपड़ी , पीने को नदी का जल तथा खाने को रूखा - सूखा भोजन ; फिर भी चेहरे पर गहरा संतोष और बाल सुलभ आनन्द , यह थी सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की परोपकार रत भावना का प्रत्यक्ष प्रमाण।

   संत साकार ब्रह्म होने के कारण उनकी वाणी को ब्रह्मवाणी कहना अयुक्त नहीं है । महर्षि में ही सत्संग - सुधा - सागर उन्हीं ब्रह्मवाणी का संकलन है । वह ब्रह्मवाणी क्या है ? अमरता प्रदान करनेवाला अमृत ही है , जो महर्षि में हीँ परमहंसजी महाराज के श्रीमुख से प्रवचन के क्रम में निःसृत हुआ करता था । जो व्यक्ति इस ज्ञानामृत का प्रसाद ग्रहण करेंगे , वे अंधकार से प्रकाश में , असत् से सत् में और मृत्यु से अमृत में प्रतिष्ठित होकर सर्वसुख-शांति के भागी होंगे । 


सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागरमहर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर


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